امام صادق علیه السلام : اگر من زمان او (حضرت مهدی علیه السلام ) را درک کنم ، در تمام زندگی و حیاتم به او خدمت می کنم.
किसकी बात मानें ?

किसकी बात मानें ?

क्या इंसान ऐसे दानिश्वरों की बात माने जो खयानतकार और ज़ालिम हैं या फिर ज़ालिम मुल्कों के पिट्ठू हैं ?

हमेशा से ज़ालिमो ने खुदा के भेजे गये पैग़म्बरों की मुख़ालफ़त की है और लोगों को उनकी बात मानने से रोका है और मना किया है।

हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के रेसालत व नोबूवत के ज़माने में और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की इमामत के ज़माने में दुनिया का बदतरीन गिरोह उनकी मोख़ालेफ़त में उठा, जिसने लोगों को उनसे दूर किया और उनकी बात मानने से रोका। यहाँ तक कि उनकी हदीसों को लिखने से भी मना कर दिया। और इस तरह से इल्म के दरवाज़े को बंद करके जाहेलियत के दरवाज़े को खोल दिया।

ज़ालिमों ने लोगों को अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम से दूर करके इल्मी उन्नती को रोक दिया जिसका सबसे बड़ा नोक़सान यह हुआ कि इल्म के रहस्य खुलकर सबके सामने नहीं आ सके।

क्या इंसानों को ऐसे लोगों की बात मानना चाहिए कि जिसके सामने संसार के सारे रहस्य उजागर हों या ऐसे की बात माने जो कुछ नहीं जानता हो ?

मुझे नहीं मालूम कि मैं क्या हूँ मगर जब मैं ख़ुद को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि मैं उस बच्चे की तरह हूँ जो समुंदर के तट पर उछल-कूद कर रहा हो। और रंग-बिरेंगे पत्थरों से खेलने में लाग हुआ हो। और समुंदर की तेज़ व तुंद लहरों से बेख़बर हो।(25)

यह एक ऐसा सत्य है कि जो ना सिर्फ़ न्यूटन पर नहीं बल्कि दुनिया के हर इंसान पर लागू होता है।

लेकिन हमारा सवाल यह है किः

क्या इंसान को खेल कूद में लगे हुए बच्चे की बात मानना चाहिए या किसी ऐसे की खोज करना चाहिए कि जो दुनिया के सारे रहस्य को जानता हो ?

 


(25) फ़िक्र, नज़्म, अमलः 93

 

 

    بازدید : 2234
    بازديد امروز : 18458
    بازديد ديروز : 165700
    بازديد کل : 138997156
    بازديد کل : 95541035