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3) दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव

3) दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव

ज़ोहूर के वैभव पूर्ण ज़माने में ज़मीन पर बहुत बड़ी तब्दीलियां सामने आएगीं, और क़ुरआने मजीद के फ़रमान के मुताबिक़ः

يَوْمَ تُبَدَّلُ الأَرْضُ غَيْرَ الأَرْضِ[1]

उस दिन जब ज़मीन दूसरी ज़मीन में बदल जाएगी

ज़मीन एक नए तरीक़े और नई हालत में सामने आएगी और ना केवल ज़मीन बल्कि समय भी तबदीलियों का शिकार हो जाएगा।

आज तमाम विद्रान इस पर एक मत हैं कि माद्दा (मूल तत्व) कंपन से पैदा हुआ है, और कंपन को केबिल या ध्वनी किरणों के माध्यम से जैसे फोटो और आवाज़ की सूरत में दूर दराज़ स्थानों पर भेजा जा सकता है, जिसका नतीजा यह हुआ कि इन्सान के जिस्म की बनावट (Organism) जो कि माद्दे से बनी है को कंपन में बदला जा सकता है और इलेक्ट्रानिक्स के माध्यम से उसको दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचाया जा सकता है

मेरा मानना यह है कि निकट भविष्य में यहां तक कि अंतरिक्ष यात्राओं से भी पहले, ऍसे तरीक़े बनाए जा सकेंगे कि जिसके माध्यम से इन्सान के जिस्म को कंपन में बदला जा सकेगा और उसको अंतरिक्ष में भैजा जा सकेगा और वहा अलग अलग कणों को फिर से मिलाकर एक जिस्म बनाया जा सकेगा।

अब हमारे पाठक स्वंय फ़ैसला करें कि इन्सान आत्मा है और उसका जिस्म मिले हुए कणों और माद्दे के अतरिक्त कुछ नही है कि जिसको कंपन के कम करने या उसकी गति को कम करके किसी भी रूप में बदला जा सकता है।[2]

हो सकता है कि हम किसी दिन यह देखें कि इन्सान अपने जिस्म को इलेक्ट्रान में बदल दे ताकि इसके माध्यम से दूर दराज़ की यात्र कर सके और वहां पर जिस्म को एक साथ रखने वाले एटम को मिलाकर दोबारा सूरत पा जाए[3]

दिमाग़ी शक्ति की पूर्णता कि जिसकी तरफ़ रिवायत में इशारा किया गया है, आत्मा का तमाम माद्दी चीज़ों पर अधिपत्य है और लोग अपने जिस्मों पर कंट्रोल करेगें, और इस अवस्था के पूर्ण लाभ उठाएंगे, और उन रहस्यमी और वैभव पूर्ण दिनों में लोगों का जीवन और उनकी माद्दी चीज़ों की आवश्यकता एक अलग प्रकार की होगी।

विलायते अहले बैत (अ) के नूर के ज़ोहूर की रौशनी में इन्सान का इल्म और ज्ञान संभावनाओं की अंतिम सीढ़ी तक पहुंच जाएगा, और इन्सान इल्म और ज्ञान की सारी तरक़्क़ियों से लाभ उठाएगा और ख़ुदा के वली उस दिन वह राज़ (जो लोगों की मानसिक्ता के तैयार ना होने के कारण छिपा लिया करते थे) ज़ाहिर कर देंगे, और इन्सान को अपनी रहस्यम दुनिया और बाहर की दुनिया से परिचित कराएगें, और उनके लिए तरबियत और पूर्णता की अंतिम राह खोल देंगे।

संभव है कि इस प्रकार की बातों को स्वीकार करना हमारे लिए कठिन हो, और इल्मी की इतनी अधिक तरक़्क़ी को शायद हम स्वीकार ना कर सकें, जब्कि हम जानते हैं कि इन्सानी दिमाग़ शैतान के चंगुल से आज़ाद हो जाए तो उसका अर्थ यह है कि इन्सान तमाम दर्जों में पूर्ण हो जाता है, इस प्रकार कि दुनिया का कोई भी राज़ उससे छिपा नही रह जाता है और तमाम कठिन इल्मी मसअलों का हल निकल आता है और वह उसके लिए आसान हो जाते हैं।

हज़रत अमीरुल मोमेनीन (अ)(ख़िलाफ़त को ग़स्ब करने वालों ने आप की ख़िलाफ़त को ग़स्ब करके आज तक अरबों लोगों को इल्म और कमाल के सब से ऊँचे मरतबे और विलायत की चमकती हुई संस्क्रति तक पहुंचने से रोके रखा) अपने एक कथन में जो आपके वजूद की गहराईयों से निकलता हैं फ़रमाते हैः

یٰا کُمَیْل مٰا مِنْ عِلْمٍ اِلاّٰ وَ اَنَا اَفْتَحُہُ وَمٰا مِنْ سَرٍّ اِلاّٰ وَ الْقٰائِمُ یَخْتِمُہ[4]

ऍ! कुमैल कोई इल्म नही है मगर यह कि मैने उसे खोला है, और कोई राज़ नही है मगर यह कि क़ाएम (अ) उसे अंतिम पड़ाव तक पहुचाएं।

बे शक उस समय जब हज़रत बक़ीयतुल्लाहिल आज़म (अ) के हाथों से चमकता हुआ नूर दुनिया के ग़मों मे डूबे हुए और अत्याचार का शिकार लोगों की अक़्लों को पूर्ण करेगा, और उसकी आश्चर्य जनक शक्तियों से लाभ उठाने की शक्ति पैदा कर देगा, तब इन्सान अपनी पूर्ण अक़्ल और समझ (ना केवल एक अरबवें भाग) से ख़ानदाने वही के जीवनदायी राज़ों को स्वीकार कर सकेगा और इल्म और पूर्णता के अंतिम मरतबे तक पहुच सकेगा।

उन बैभव पूर्ण दिनों में छिपे हुए राज़ खुल जाएंगे और इस ज़माने का अंधेरा और तारीकी का नाम और निशान भी ना होगा, क्यों इस प्रकार के दिनों तक पहुचने का इन्तेज़ार आपके दिलों को ख़ुलूस और पवित्रता नही देगा?!


 


[1] सूरा इब्राहीम आयत 48

[2] यह एक रिवायत की तरफ़ इशारा है तो बताती हैं कि اذا اتسع الزمان، فابرار الزمان اولیٰ بہ बिहारुल अनवार जिल्द 47, पेज 345

[3] रूह ज़िन्दा मी मानद, पेज 158

[4] बिहारुल अनवार, जिल्द 77, पेज 269

 

 

 

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